
विकास धाकड़
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राजसमन्द:तेरापंथ भवन में साध्वी प्रोफेसर डॉ. मंगलप्रज्ञा के सान्निध्य में प्रेक्षाध्यान वर्कशाप आयोजित की गई। इस अवसर पर उपस्थित परिषद को सम्बोधित करते हुए साध्वी ने कहा – प्रेक्षाध्यान के रूप में गुरुदेव श्री तुलसी और आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने मानवजाति को ‘अमूल्य वरदान’ दिया है। ध्यान जैन परंपरा की साधना की अभिनव पद्धति है। आचार्य महाप्रज्ञ ने वर्षों तक सैकड़ों प्रयोग किए, खोई हुई ध्यान पद्धति का पुनरुद्धार किया। प्रेक्षाध्यान आत्मानंद, शांति, शक्ति, स्वास्थ्य प्राप्त करने का विशिष्ट खजाना है। यह प्रकाश की साधना है। हताश, निराश जिन्दगी जीने वाले लाखों लाखों व्यक्तियों को इस पद्धति से संतुलित जीवन जीने के सूत्र मिले हैं। उपस्थित परिषद को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए साध्वी मंगल प्रज्ञा ने कहा- हर व्यक्ति को कम-से-कम प्रतिदिन 15 मिनट ध्यान-साधना अवश्य करनी चाहिए। जीवन चर्या के साथ इस साधना को अवश्य सम्मिलित करना चाहिए। श्वास के साथ मंत्र-साधना की संयुक्ति भी विशिष्ट साधना है। प्रेक्षाध्यान साधना से आधि, व्याधि, उपाधि से निजात पाकर व्यक्ति उत्तम समाधि की ओर प्रस्थान कर सकता है। साध्वी ने इस अवसर में श्रमण श्रेणी में की गई। विदेश यात्रा के अनेक अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा – जिन्दगी से हार चुके अनेक व्यक्तियों ने ध्यान के प्रयोगों से अपनी दिशा बदल ली।
आज तनावग्रस्त जीवनशैली के लिए ध्यान के प्रयोग अत्यावश्यक है। जिन्दगी की भागदौड़ में अपने अस्तित्व का सदैव स्मरण रहना चाहिए। मानव-मन में अथाह शक्ति भरी हुई है। उस शक्ति की पहचान के लिए आत्म चक्षु जागृत हो, इसलिए ध्यान करना आवश्यक है। अनुभव गम्य आनन्द से व्यक्ति का फैसला बुलंद होता है।मन में विश्वास जगता है ।और वह जो कार्य करना चाहता है।उसमें सफलता भी मिलती है। इसलिए – “प्रेक्षाध्यान साधना द्वारा, बदले जीवन धारा ” अभियान को सार्थक बनाएं। साध्वी ने वर्कशॉप में संभागी सदस्यों को ध्यान के प्रयोग करवाएं। साध्वी सुदर्शन प्रभा ने कहा- प्रेक्षाध्यान के द्वारा विवेक चेतना का जागरण होता है। व्यक्ति अनेक प्रकार की ऊर्जा का संचय कर लेता है। साध्वी सुदर्शन प्रभा , साध्वी अतुलयशा और साध्वी डॉ. शौर्यप्रभा ने प्रेक्षा- संगान किया।