आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का महाश्रमण विहार में 105 वा जन्म दिवस मनाया,


मनीष दवे
म्हारो राजस्थान राजस्थान टीवी
राजसमन्द : चारभुजा शुक्रवार 5 जुलाई युग प्रधान आचार्य श्री महाश्रमण के आज्ञानुवर्ती शासन मुनि रविंद्र कुमार एवं मुनि अतुल कुमार के सानिध्य में आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के 105 वें जन्म दिवस का आयोजन किया गया। मुनि अतुल कुमार ने अपने संबोधन में कहा हर माता-पिता की यह तमन्ना होती है कि उनकी संताने उनका और कुल का नाम रोशन करें। ऐसे में सबसे पहली बात तो ऐसा कोई काम ना करो जिससे मां बाप को तकलीफ हो।अच्छी आदत डालें, अच्छे संस्कार लें। संतान का उनके प्रति दायित्व बनता है कि वे उच्च कोटि का कार्य करें। हर संतान का पहला फर्ज है कि वह अपने माता-पिता का नाम गौरवान्वित व रोशन करें। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने अपने माता-पिता के नाम के साथ-साथ भारत का नाम गौरवान्वित किया।आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का जन्म राजस्थान के थली संभाग के टमकौर गांव में पिता तोलाराम जी व माता बालू देवी की कुक्षी में हुआ। टमकौर एक साधारण गांव था। जहां ना तो रेल आती, ना कोई सड़क, ना कोई बाजार और ना ही कोई विद्यालय। आचार्य महाप्रज्ञ जी का नाम नथमल था। छोटी अवस्था में ही आपके पिताजी तोलाराम जी का निधन हो गया था। घर की सार संभाल करने वाला कोई नहीं था।इसलिए माता बच्चों को लेकर पीहर चली गई। वहां संतों ने संसार की नश्वरता का बोध करवाया। जिससे नथमल के हृदय में वैराग्य भावना उत्पन्न हो गई। मुनि जीवन के कठोर मार्ग को स्वीकार करके आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत की। आचार्य महाप्रज्ञ का मुख्य लक्ष्य अहिंसा रहा।आचार्य महाप्रज्ञ जी अच्छे साहित्यकार एवं प्रवचनकार बनें। गुजरात के सांप्रदायिक दंगों के बाद उत्पन्न आपसी कटुता,घृणा, नफरत, द्वेष और हिंसा को खत्म करने के लिए आचार्य महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रयासों के सार्थक परिणाम आए।धन्य हैं वह माता-पिता जिनके घर ऐसे सपूत जन्म लेते हैं। मिसाइलमैन के नाम से प्रसिद्ध डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम आचार्य श्री से बहुत प्रभावित थे। वे अपना हर जन्मदिन आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की सन्निधि में ही मनाते थे।उन्हीं की प्रेरणा थी कि डॉ कलाम ने राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने के लिए अस्त्र शस्त्र की शक्ति के साथ-साथ अमन एवं शांति के लिए अहिंसा को भी तेजस्वी बनाया। मुनि रविंद्र कुमार ने मंगल पाठ सुनाया।रेखा मादरेचा, कन्हैयालाल कावड़िया एवं पारसमल पटवारी ने विचार रखे। प्रवचन में बड़ी संख्या में जैन समाज की महिलाएं और पुरुष उपस्थित रहे