गांवो शहरो में बरकरार है गवरी खेल का महत्व
खुशाल श्रीमाली
म्हारो राजस्थान राजस्थान टीवी

राजसमंद। मेवाड़ में गौरी पूजन से की परंपरा वर्षो पुरानी है। वर्तमान में भी आदिवासी समाज के लोग इस परंपरा का उसी उत्साह के साथ में पालन नहीं करते हुए गवरी का मंचन कर रहे है। गवरी मंचन का मेंवाड में इस कदर आकर्षण है कि गांव-देहात हो या आधुनिक शहर हर जगह पर इसका क्रेज बना हुआ है। और बढ़ाताही जा रहा है।
गवरी के आयोजन के तहत रक्षाबंधन के बाद करीब 30 से 40 लोगों का दल गांव से विदा होता है। आदिवासी समाज के लोगो का दल आसपास के गांव में जाकर गवरी के खेल का मंचन करते हैं। और गौरी पूजन कर अच्छी बारिश और खुशहाली की कामना करते है।
इस पूजन के साथ ही खेल के मंचन के दौरान कुछ हंसी मजाक और ऐतिहासिक घटनाओं का भी संजीव चित्रण किया जाता है। जो लोगों को मनोरंजन के साथ में धार्मिक व ऐतिहासिक घटनाओं को याद कराता है। मेवाड क्षैत्र में गवरी के मंचन का महत्व और दर्जा बहुत बड़ा है।कुछ इस कदर रहता है कि गांव हो या शहर हर स्थान पर गवरी का मंचन करने वाले इन आदिवासी समाज के कलाकारो का सम्मान होता है। वही आमजन बडे ही उत्साह उमंग के साथ में गवरी के खेल को देखते है।
आस्था की दृष्टि से आदिवासी और भील समाज इसे एक तपस्या के रूप में लेते हैं। इस खेल में महिलाओं को सम्मिलित नहीं किया जाता हैं बल्कि पुरुष ही महिलाओं का स्वांग कर इन खेलों को खेलते हैं। जिनमें शिव-पार्वती, कान्हा-गुजरी, राजा-रानी, सेठ-सेठानी, बादशाह-बीरबल जैसे खेलो का मंचन होता है। आज के मोबाइल के युग में भी आमजन मे इन खेलों के प्रति उत्साह बरकरार है। बुजुर्ग लोगो के अलावा नई पीढ़ी के युवा भी पूरे उत्साह से गवरी खेल को देखने के साक्षी बनते है।
समीपवर्ती कुरज कस्बे के अहीरों के मंदिर परिसर में रविवार को गवरी के कलाकारों द्वारा गवरी खेल का मंचन किया गया। कस्बे के युवा कार्यकर्ता बसंती लाल स्वर्णकार ने बताया कि गवरी के मंचन को देखने के लिए ग्रामीणों की भीड उमड पडी।