


विकास धाकड़
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मुंबई:शांतिदूत आचार्य महाश्रमण की प्रबुद्ध शिष्या प्रोफेसर साध्वी मंगलप्रज्ञा के नेतृत्व में जैन तेरापंथ समाज का एक प्रतिनिधिमंडल महाराष्ट्र राजभवन के प्रांगण में पहुंचा। जहां पर राजभवन के कान्फ्रेंस हॉल में राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन् की गरिमामयी उपस्थिति में अणुव्रत के संदर्भ में एक विशेष संगोष्ठी आयोजित हुई। प्रबुद्धजनों के मध्य लगभग एक घण्टे यह विशिष्ट कार्यक्रम हुआ दक्षिण भारतीय सामान्य वेशभूषा में एक असाधारण व्यक्तित्व के धनी एवं विशिष्ट प्रतिभासम्पन्न, शालीन एवं विनम्र महाराष्ट्र के राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन् का राजभवन के कान्फ्रेन्स हॉल में राजकीय पारम्परिक व्यवस्था के अनुसार आगमन हुआ। राज्यपाल ने ज्योंहि साध्वीवृन्द को देखा अपने चप्पल खोलकर साध्वी मंगलप्रभा के निकट आकर मस्तक झुकाकर उनका अभिवादन किया। भारतीय सन्त परम्परा के प्रति राज्यपाल महोदय का आदर सम्मान उल्लेखनीय था। कार्यक्रम के अन्त में जब साध्वी जी ने मंगलपाठ का श्रवण करवाया ।तब वे थोड़ी देर झुककर करबद्ध होकर खड़े रहे, यह दृश्य भी जैन संतों के प्रति उनकी आदर भावना का संसूचक था। कार्यक्रम का प्रारम्भ नमस्कार महामंत्र के साथ हुआ। अणुविभा संस्था परिचय महामंत्री मनोज सिंघवी ने किया। एवं स्वागत मुम्बई सभा अध्यक्ष माणक धींग ने किया। प्रारम्भ में राज्यपाल महोदय का संक्षिप्त-सा स्वागत, समाज के विशिष्ट व्यक्तियों ने किया। किशनलाल डागलिया पूर्व अध्यक्ष महासभा, विनोद कोठारी उपाध्यक्ष अणुविभा, कुन्दनमल धाकड अध्यक्ष आचार्य महाप्रज्ञ विद्यानिधि फाउण्डेशन, कार्याध्यक्ष, नीतेश धाकड उपाध्यक्ष सभा दक्षिण मुंबई आदि ने साहित्य, शाल्यार्पण आदि। से राज्यपाल का सम्मान किया। इस स्वागत कार्यक्रम का संचालन अणुविभा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य राजकुमार चपलोत ने किया। स्वागत के पश्चात साध्वी राजुलप्रभा ने मुख्य कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए। साध्वी प्रो. मंगलप्रज्ञा का परिचय प्रस्तुत किया। मुख्य कार्यक्रम में सभा को सम्बोधित करते हुए साध्वी मंगलप्रज्ञा ने अपने वक्तव्य में गुरुदेव श्री तुलसी द्वारा प्रवर्तित अणुव्रत आन्दोलन की अवगति देते हुए प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र बाबू, डॉ. राधाकृष्णन सर्वपल्ली आदि अनेक राजनेताओं के अणुव्रत से संबन्धों को रेखांकित करते हुए गुरुदेव श्री तुलसी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। आचार्य श्री महाप्रज्ञ एवं पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे अब्दुल कलाम द्वारा साथ में लिखित ‘‘फेमिली एवं नेशन’’ पुस्तक की जानकारी दी। वर्तमान अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण के द्वारा कृत अहिंसा यात्रा तथा अणुव्रत के कार्य की अवगति दी। गुरुदेव के दिशा निर्देशन में संचालित अणुव्रत डिजिटल डिटॉक्स एलिवेट आदि आयामों की अवगति विस्तार से दी। संतचर्चा की विशद् जानकारी साध्वी श्री द्वारा प्राप्त कर राज्यपाल अत्यधिक प्रसन्न हुए। दत्तचित्त वे साध्वी जी को सुन रहे थे। साध्वी चैतन्य प्रभा जी ने एलिवेट कार्यक्रम की एवं साध्वी शौर्यप्रभा जी ने डिजिटल डिटॉक्स की जानकारी कार्यक्रम में दी राज्यपाल महोदय ने अपने वक्तव्य में कहा- आप लोग मानवता के लिए खूब अच्छा कार्य कर रहे हों। इसकी मुझे प्रसन्नता है। जैन कम्यूनिटी शान्ति प्रिय है। अपने द्वारा किसी को दुखी नहीं करना, यह इस कम्यूनिटी की विशेषता है। राज्यपाल महोदय ने कहा – सामान्यतः लोग सोचते हैं- जैन धर्म नॉर्थ इण्डिया में ही है, किन्तु ऐसा नहीं है। जैन धर्म दक्षिण में बहुत था। दो तिहाई तमिल पूर्व में जैन थे, वहां दक्षिण में जैन धर्म का खूब प्रभाव है। राज्यपाल महोदय ने आगत प्रतिनिधि मंडल को कहा – आप जो यह अच्छा कार्य कर रहे हैं उसके लिए राजभवन से जो भी सहयोग चाहिए वह आपको हमारी तरफ से प्राप्त होगा। हमारे से सब प्रकार के लोग मिलते हैं किन्तु आप साध्वियों से अच्छे लोगों से मिलने से आन्तरिक प्रसन्नता मिली। आप लोग जन कल्याण का कार्य करते रहे साध्वी jमंगल प्रज्ञा जी ने राज्यपाल महोदय से बातचीत के दौरान आचार्य श्री महाश्रमण जी के अहमदाबाद चातुर्मास की अवगति दी एवं राज्यपाल महोदय को गुरुदेव के दर्शन की प्रेरणा दी। राज्यपाल महोदय ने इसके लिए अपनी अभिरुचि प्रकट की एवं अपने अधिकारियों से सम्पर्क करने का कहा। परमपूज्य गुरुदेव की कृपा से महाराष्ट्र राजभवन का कार्यक्रम अत्यन्त संघ प्रभावक एवं गरिमापूर्ण रहा कार्यक्रम के अन्त में साध्वी मंगलप्रज्ञाजी द्वारा अनुवादित तत्त्वार्थ सूत्र (प्रथम खण्ड) को श्री किशनलाल डागलिया एवं राजकुमार चपलोत ने राज्यपाल को भेंट किया। साध्वी सुदर्शन प्रभा जी एवं साध्वी अतुलयशा जी ने भी कार्यक्रम में सामयिक गीत का संगान किया। इस कार्यक्रम की आयोजना, संयोजन में मुंबई के विशिष्ट कार्यकर्ता श्री राजकुमार चपलोत एवं मुुंबई शहर विभाग के संघचालक श्री रविन्द्र जी सिंधवी, राज्यपाल के जन संपर्क अधिकारी श्री उमेश जी काशीकर का उल्लेखनीय सहयोग रहा।