
विकास धाकड़
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मुंबई : दक्षिण मुंबई के कालबादेवी स्थित तेरापंथ भवन आचार्य तुलसी सभागृह में उपस्थित श्रावक श्रविकाओं को सम्बोधित करते हुए। प्रोफेसर साध्वी मंगल प्रज्ञा ने कहा-हर व्यक्ति आचारांग सूत्र के प्रेरक साधना सुत्र-सोडहं की अनुप्रेक्षा हर व्यक्ति को करनी चाहिए। व्यक्ति अपने परमात्म स्वरूप को पहचाने स्वबोध होने पर स्वतः की चिन्तन आत्मोन्मुखी बन जाती है। साध्वी ने विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा- व्यक्ति का अधिकतर सम्बन्ध पदार्थ जगत के साथ रहता है। यह सत्य है। कि पदार्थ जीवन यापन की अनिवार्य आवश्यकता है। पर विवेक चेतना जागृत रहनी चाहिए। यह भी सत्य है। जिनके साथ ज्यादा रहते हैं ।उनकी याद भी ज्यादा आती है। जीवन में अध्यात्म की भी परम आवश्यकता है ।उच्च प्रवृत्तियों के साथ अध्यात्मभाव भी बढ़ता रहे । परम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आत्मकेन्द्रित बनना आवश्यक है। जितना हो सके अनासक्तभाव जागरण की दिशा में पुरुषार्थ होता रहे। हर व्यक्ति में परमात्मा बनने का सामर्थ्य है। पर उसकी प्राप्ति के लिए शक्ति का भी सम्यक नियोजन होना चाहिए। ऐसा लग रहा है। हम अपनी भीतरी दुनिया को भूल गए हैं। साग्यभाव की साधना करने में चित्त को लगाए । शक्ति संवर्धन के अनेक प्रयोग हमें प्राप्त हैं। आवश्यकता है। श्रद्धा के साथ शक्ति की साधना करें। मनुष्यत्व को कार्यकारी बनायें मात्र पदार्थ जगत से मोह न हो। अध्यात्म के बिना पदार्थ जगत तनाव और समस्या पैदा करता है। तनाव मुक्तता और शान्ति प्राप्ति के लिए अध्यात्म की शरण लें। प्रवचन से पूर्व साध्वी राजुलप्रभा ने भगवान महावीर वाणी का रसास्वादन करवाया। साध्वी सुदर्शन प्रभा ने ध्यान का प्रयोग करवाया। पुरे श्रावक समाज की सराहनीय उपस्थिति रही !